Monday, February 20, 2017

Rajasthani / marwari collection



राजस्थानी दोहे
लोग न जाणै कायदा
ना जाणै अपणेस ।
राम भलाईँ मौत दे
मत दीजै प्रदेश ||
ना सुख चाहु सुरग रो
नरक आवसी दाय।
म्हारी माटी गांव री
गळियाँ जै रळ जाय॥
जोगी आयो गांव सूँ
ल्यायो ओ समचार ।
काळ पड्यो नी धुक सक्यो
दिवलाँ रो त्युहार् ॥
इकतारो अर गीतडा
जोगी री जागीर ।
घिरता फिरतापावणा
घर घर थारो सीर ॥
आ जोगी बंतल कराँ
पूछा मन री बात ।
उगता हुसी गांव मँ
अब भी दिन अर रात ॥
जमती हुसी मैफलाँ
मद छकिया भोपाळ ।
देता हुसी आपजी
अब पी कै गाळ ॥
दारू पीवै आपजी
टूट्यो पड्यो गिलास ।
पी कै बोलै फारसी
पड्या न एक किलास ॥
साँझ ढल्याँ नित गाँव री
भर ज्याती चौपाळ ।
चिलमा धूँवा चालती
बाताँ आळ पताळ ॥
पाती लेज्या डाकिया
जा मरवण रै देश ।
प्रीत बिना जिणो किसो
कैजे ओ सन्देश ॥
काळी कोसा आंतरै
परदेशी री प्रीत ।
पूग सकै तो पूग तूँ
नेह बिजोगी गीत ॥
मरवण गावै पीपली
तेजो गावै लोग ।
मै बैठयो परदेश मँ
भोगू रोग बिजोग ।।
सावण आयो सायनी
खेता नाचै मोर ।
म्हारै नैणा रात दिन
गळ गळ जावै मोर ॥
जद तू मिलसी बेलिया
करस्यूँ मन री बात ।
बध बध देस्यू ओळमा
भर भर रोस्यूँ बाँथ ॥
पैली तारिख लागताँ
जागै घर ओ भाग ।
मनियाडर री बाट मँ
बाप उडावै काग ॥
फागण राच्यो फोगला
रागाँ रची धमाल ।
चाल सपन तूँ गाँव री
गळीयाँ मँ ले चाल ॥
घर, गळियारा, सायना,
सेजाँ सुख री छाँव् ।
दो रोट्या रै कारणै
पेट छुडावै गाँव ॥
चैत चुरावै चित्त नै
चित्त आयो चित्तचोर ।
गौर बणाती गौरडी
खुद बणगी गणगौर ॥
चपडासी है सा’ब रो
बूढो ठेरो बाप ।
बडै घराणै भोगरयो
गेल जनम रा पाप॥
बेली तरसै गांव मँ
मन मँ तरसै हेत ।
घिर घिर तरसै एकली
सेजाँ मँ परणेत ॥
भाँत भाँत री बात है
बात बात दुभाँत ।
परदेशाँ रा लोगडा
ज्यूँ हाथी रा दांत ॥
गळै मशीनाँ मँ सदा
गांवा री सै मौज ।
परदेसाँ मै गांगलो
घर रो राजा भोज ॥
बैठ भलाईँ डागळै
मत कर कागा कांव ।
चित चैते अर नैण मँ
गूमण लागै गांव ।।
बडा बडेरा कैंवता
पंडित और पिरोत।
बडै भाग और पुन्न सूँ
मिलै गांव री मौत ।|
लोग चौकसी राखता
खुद बांका सिरदार ।
बांकडला परदेस मँ
बणग्या चौकीदार ॥
मरती बेळ्या आदमी
रटै राम र्रो नांव ।
म्हारी सांसा साथ ही
चित्त सू जासी गांव ॥
मै परदेशी दरद हूँ
तू गांवा री मौज ।
मै हू सूरज जेठ रो
तूँ धरती आसोज॥
बेमाता रा आंकङा
मेट्या मिटे नै एक ।
गूंगै री ज्यू गांव रा
दिन भर सुपना देख ॥
दादोसा पुचकारता
दादा करता लाड ।
पीसाँ खातर आपजी
दियो दिसावर काढ ।।
मायड रोयी रात भर
रह्यो खांसतो बाप ।
जिण घर रो बारणो
मै छोड्यो चुपचाप ॥
जद सूँ परदेसी हुयो
भूल्यो सगळा काम ।
गांवा रो हंस बोलणौ
कीया भूलू राम ॥
गरजै बरसै गांव मै
चौमासै रो मेह ।
सेजा बरसै सायनी
परदेसी रो नेह ॥
कुण चुपकै सी कान मै
कग्यो मन री बात ।
रात हमेशा आवती
रात नै आयी रात ॥
आंगण मांड्या मांडणा
कंवलै मांड्या गीत ।
मन री मैडी मांडदी
मरवण थारी प्रीत ॥
दोरा सोराँ दिन ढल्यो
जपताँ थारो नाम ।
च्यार पहर री रात आ
कीयाँ ढळसी राम ॥
सांपा री गत जी उठी
पुरवाई मँ याद ।
प्रीत पुराणै दरद रै
घांवा पडी मवाद ॥
नैण बिछायाँ मारगाँ
मन रा खोल कपाट ।
चढ चौबारै सायनी
जोती हुसी बाट ॥
प्रीत करी गैला हुया
लाजाँ तोङी पाळ ।
दिन भर चुगिया चिरडा
रात्यु काढी गाळ ॥
पाती लिखदे डाकिया
लिखदे सात सलाम ।
उपर लिख दे पीव रो
नीचै म्हारो नांम ॥
दीप जळास्यु हेत रा
दीवाळी रो नाम ।
इण कातिक तो आ घराँ
ओ ! परदेसी राम ॥
जोबण घेर घुमेर है
निरखै सारो गांव ।
म्हारै होठाँ आयग्यो
परदेसी रो नांव ॥
जीव जळावै डाकियो
बांटै घर घर डाक ।
म्हारै घर रै आंगणै
कदै न देख झांक ॥
मैडी उभी कामणी
कामणगारो फाग ।
उडतो सो मन प्रीत रो
रोज उडावै काग ॥
बागाँ कोयल गांवती
खेता गाता मोर ।
जब अम्बर मँ बादळी
घिरता लोराँ लोर ॥
बाबल रै घर खेलती
दरद न जाण्यो कोय ।
साजन थारै आंगणै
उमर बिताई रोय ॥
बाबल सूंपी गाय ज्यूँ
परदेसी रै लार ।
मार एक बर ज्यान सूँ
तडपाके मत मार ॥
नणद,जिठाणी,जेठसा
दयोराणी अर सास ।
सगलाँ रै रैताँ थका
थाँ बिन घणी उदास ॥
सुस्ताले मन पावणा
गांव प्रीत री पाळ ।
मिनख पणै रै नांव पर
सहर सूगली गाळ ॥
सहर डूंगरी दूर री
दीखै घणी सरूप ।
सहर बस्याँ बेरो पडै
किण रो कैडो रूप ॥
खाणो पीणो बैठणो
घडी नही बिसराम ।
बो जावै परदेस मँ
जिण रो रूसै राम ||
सूका सूका खेतडा
पण नैणा मै बाढ ।
घर मँ कोनी बाजरी
ऊपर सूँ दो साढ ॥
जद सूँ पाकी बाजरी
काचर मोठ समेत ।
दिन भर नापै चाव सूँ
पटवारी जी खेत ॥
फिर फिर आवै बादळी
घिर घिर आवै मेह ।
सर सर करती पून मँ
थर थर कांपै देह ॥
होगी सोळा साल री
बेटी करै बणाव ।
कद निपजैली टीबडी
कद मांडूला ब्याव ॥
टूटी फूटी झूँपडी
बरसै गरजै गाज ।
इण चौमासै रामजी
दोराँ रहसी लाज ॥
टाबर टीकर मोकळाँ
करजै री भरमार ।
राम रूखाळी राखजै
थाँ सरणै घरबार ॥
निरधनियाँ नै धन मिल्यो
रोजणख्याँ नै राग ।
राम बता कद जागसी
परदेसी रा भाग ॥
उगतो पिणघट ऊपराँ
सुणतो मिठी बात ।
गळी गुवाडी घूमतो
चान्दो सारी रात ॥
ना पिणघट ना बावडी
ना कोयल ना छाँव ।
तो भी चोखो सहर सूँ
म्हारो आधो गांव ॥
सांझ ढळ्याँ नित जांवता
देखै सारो गांव ।
पिरमा थारी लाडली
पटवारी रै ठांव ॥
पैली उठती गौरडी
पाछै उठती भोर ।
झांझर कै ही नीरती
सगळा डांगर ढोर ॥
छैल सहर सूँ बावडै
खरचै धोबा धोब ।
पडै गांव मै रात दिन
पटवारी सा रोब ॥
जद मन तरस्यो गांव नै
जद जद हुयो अधीर ।
दूहा रै मिस मांडदी
परदेसी री पीर ॥
प्रीत आपरी अचपळी
घणी करै कुचमाद ।
सुपना मै सामी रवै
जाग्या आवै याद ॥
पाती लिख रियो गांव नै
अपरंच ओ समचार ।
दुख पावुँ परदेस मँ
जीवूँ हूँ मन मार ॥
राग रंग नी आवडै
कींकर उपजै तान ।
घर मै कोनी बाजरी
अर टूट्योडी छान ॥
घर दे घर रूजगार दे
घर घर री दे साख ।
ना देवै तो सांवरा
जीवण पाछो राख ॥
बिन हरियाळी रूंखडा
घरघूल्या सा ठांव ।
’राही’ दीखै दूर सूँ
थारो आधो गांव ॥
लेग्या तो हा गांव सूँ
कंचन देही राज ।
पाछी ल्याया सहर सूँ
खांसी कब्जी खाज ॥
गाय चराती छोरडयाँ
जोबन सूँ अणजाण ।
देख ओपरा जा लूकै
कर जांटी री आण ।।
जोध जुवानी बेलड्याँ
मिलसी करयाँ बणाव ।
आखडजै मत पावणा
पगडंड्या रै गांव ॥
के तडपासी बादळी
के कोयल री कूक ।
पैली ही सूँ काळजो हुयो
पड्यो दो टूक ॥
अजब पीर परदेस री
म मर जीवै जीव ।
घर मै तरसै गोरडी
परदेसाँ मै पीव ।।
ना आंचळ ना घूंघटो
ना हीवडै मै लाज ।
घिरसत पाळै गोरडी
रोटी पोवै राज ॥
घाटै रो घर दे दिये
दुख दीजै अणचींत ।
मतना दीजे सांवरा
परदेसी री प्रीत ॥
धान महाजन रै घराँ
ढोर बिक्या बे दाम ।
करज पुराणो बाप रो
कीयाँ चुकै राम ॥
बेटो तो परदेस मै
घर बूढा मा बाप ।
दोनो पीढी दो जघाँ
दुख भोगै चुपचाप ॥
ठाला बिन रूजगार कै
ताना देता लोग ।
भरी न अब तक गांव सूँ
मनस्या बळण जोग ॥
जद जासी परदेस तूँ
हुसी जद बरबाद ।
दरद दिसावर ई कडया
रोज करैलो याद ॥
कितरा ही दुहा लिखूँ
अकथ रहीज्या भाव ।
परदेसी रो दरद तो
है गूंगै रो भाव ॥


@@@@@

"आपणी संस्कृति"🍉🌾
मारवाड़ी बोली
ब्याँव में ढोली
लुगायां रो घुंघट
कुवे रो पणघट
....................ढूँढता रह जावोला
फोफळीया रो साग
चूल्हे मायली आग
गुवार री फळी
मिसरी री डळी
....................ढूँढता रह जावोला
चाडीये मे बिलोवणो
बाखळ में सोवणों
गाय भेंस रो धीणो
बूक सु पाणी पिणो
........................ढूंढता रह जावोला
खेजड़ी रा खोखा
भींत्यां मे झरोखा
ऊँचा ऊँचा धोरा
घर घराणे रा छोरा
........................ढूंढता रह जावोला
बडेरा री हेली
देसी गुड़ री भेली
काकडिया मतीरा
असली घी रा सीरा
........................ढूंढता रह जावोला
गाँव मे दाई
बिरत रो नाई
तलाब मे न्हावणो
बैठ कर जिमावणों
.......................ढूँढता रह जावोला
आँख्यां री शरम
आपाणों धरम
माँ जायो भाई
पतिव्रता लुगाई
....................ढूँढता रह जावोला
टाबरां री सगाई
गुवाड़ मे हथाई
बेटे री बरात
राजस्थानी री जात
...................ढूँढता रह जावोला
आपणो खुद को गाँव
माइतां को नांव
परिवार को साथ
संस्कारां की बात
...................ढूंढता रह जावोला
सबक:- आपणी संस्कृति बचावो
रंगीलो राजस्थान - पधारो म्हारे देश

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।। साजना तेरी याद में दो शब्द।।।
सावणियै री आई तीज...♡ ♡
हिंडो मांडूं हेत सूं, गाऊं गीत पच्चास...
सायब होवै साथ मेँ, हिंडो चढै अकास...♡
उठती देखी बादळी, हिवडै हरख अपार,
थां पर लादया गूदड़ा, थूं ई काळ बिसार...♡
आभै देखूं बादळा, हिवड़ै उपजै नेह,
साजन होवै साथ मेँ, भळ बरसो थे मेह...♡
आभै चमकी बीजळी,
धरती बधगी आस,
कळपै थारी कामणीँ, साजन आओ पास...♡
श्रावणी तिज कि बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं बधाई हो सा 

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रात अँधेरी ढल गहि
दिन दो डोल्यो जाय,
पीयू प्रदेश सु कद आवसी ,
आवे यादो की झनकार ,

@@@@

परदेस गए अपने पति को उसकी प्रिया, पत्नी धापुडी द्वारा लिखा गया प्रेम पत्र : --
म्हार हिवडा का हार,
म्हारा सोलहा सिंगार,
म्हारी पप्पूडी का पापा…
थारी चौडी-चौडी राफा.!
हे प्राणनाथ जी,
गोपिया का नाथ जी,
म्हार रूप का दास जी,
त्रिलोकी का नाथ जी…
थाको कोजो घणों साथ जी…..!
हे म्हारी जलती ज्योत,
करवा चौथ,
धान का बोरा,
उन्डोडा औरा…
थाका एक दर्जन छोरी और छोरा..!
भोमिया का स्वामी,
म्हारी जामी सा थाकी,
सत्यानाशी,
कुल विनाशी,
कालिया की मासी,
चरणा की दासी,
थार प्राणा की प्यासी,
थाकी पाताल फोड लाडली,
धापुडी का पगा लागणा मानज्यों…
और हो सक तो आखा-तीज पर घरा पधारज्यों…।।
आगे समाचार एक बाचज्यों कि–
सुसरो जी ने हिडकीयों कुत्तों खायगों…
और चौथियों चौथी मैं चौथी बार फेल आयगों.!
सुसरो जी तो हिडक्यो होर मरग्या…
पण मरता मरता सासू जी न हिडक्या करग्या…..!
सासू जी मरा मौत, कु-मौत, कुत्त की मौत और
सासू जी न मरता देख म्हारो भी मरणा सू मन फाटग्यों है…
जीतियों नाई काल स्वर्ग सिधारगों और
बीको तियो पंडत गरूड्यों करायग्यों है.।
गीतूडी के करमडा में है ना
जुआ पडगी है…
और सीतूडी क काना की एक बाली गमगी है…..!
थाकी काणती काकी काल
छाछ खातर घरा आर लडगी…
और म्हारी बडकी सेठानी
घीनाणी सु पानी ल्याती पडगी…..!
भुवाजी रोजीना ही गुन्द का लाडू खावै…
और नानूडा की लुगाई में
मंगलवार की मंगलवार पीतर जी आवै…।।
पपीयों,गीगो,लाल्यों और
राजिया की लुगाई चलती री,
पण थे तो जाणो ही हो
राम के आगे किको बस चाल है…
और होणी न कुण टाल है…..!
हे म्हारा बारहा टाबरा का बाप…
थानै लागै शीतला माता को श्राप..!
थे आदमी हो या हरजाई…
थे मनै अठै ऐकली छोडगा थान शरम कोनी आई.!
थे आ पूरी पलटन म्हारै वास्तै छोडगा…
एक इंजन मैं बारह डब्बा जोडगा..।
इ बार सर्दी अणहोती पडे है,
ई वास्तै टाबर घणा रोव है…
दो चार दिना सु भूखा ही सोव है…!
थाकि माय न
अब भी थोडी घणी शरम बाकी होव तो
पाछा कदै ही मत आइज्यों…
पर पाँच हजार रूपिया हाथु हाथ भिजाज्यो..
थांकी
काळजा री कोर
धापूड़ी
@@@@@@

12 comments:

  1. गांव री महिमा में लिखे दोहा री कै बखाण करूं सबद कम पड़ रिया है
    वा सा वा 👌👌👌😊

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  2. हिंदी म्हारी शान है, राजस्थानी है जाण!!
    आ दोंन्यू भाषा बिन्या रेसी कठे पिछाण.।।।

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  3. सानदार मारवाड़ी रो चस ही अलग है

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  4. बहुत बढ़िया सा

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  5. बहुत-बहुत बढ़िया सा

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  6. किया धन्यवाद् करा म्हे थारो 🙏 🙏🙏

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  7. बहुत बढ़िया

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  8. भैरव डर किण बात रो, जे अपणै मन साच। आपै परगट होवसी, ओ कंचन ओ काच।।

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